श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 1: कर्णवधका संक्षिप्त वृत्तान्त सुनकर जनमेजयका वैशम्पायनजीसे उसे विस्तारपूर्वक कहनेका अनुरोध  »  श्लोक 10-12
 
 
श्लोक  8.1.10-12 
ते कृत्वावश्यकार्याणि समाश्वस्य च भारत।
योगमाज्ञापयामासुर्युद्धाय च विनिर्ययु:॥ १०॥
कर्णं सेनापतिं कृत्वा कृतकौतुकमङ्गला:।
पूजयित्वा द्विजश्रेष्ठान् दधिपात्रघृताक्षतै:॥ ११॥
गोभिरश्वैश्च निष्कैश्च वासोभिश्च महाधनै:।
वन्द्यमाना जयाशीर्भि: सूतमागधवन्दिभि:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
नित्य कर्म से निवृत्त होकर उन्होंने अपने सैनिकों को कवच आदि धारण कर तैयार होने का आदेश दिया। विधिपूर्वक शुभ-अनुष्ठान सम्पन्न करने के पश्चात उन्होंने कर्ण को अपना सेनापति बनाया और श्रेष्ठ ब्राह्मणों को दही, पात्र, घी, साबुत चावल, गौएँ, घोड़े, गले के आभूषण और बहुमूल्य वस्त्र देकर सम्मानित करने के पश्चात् सूत, मागध और बंदीगणों द्वारा विजय का आशीर्वाद प्राप्त कर युद्ध के लिए प्रस्थान किया।
 
After completing the daily chores, being assured, he ordered his soldiers to get ready wearing armour etc. After completing the ceremonial and auspicious ceremonies, he made Karna his commander-in-chief and after honouring the best of Brahmins with curd, vessels, ghee, whole rice grains, cows, horses, neck ornaments and costly clothes, he set out for the battle after being greeted with the blessings of victory by the Suta, Magadh and prisoners.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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