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श्लोक 7.40.36-37  |
तत: कृच्छ्रगतं कर्णं दृष्ट्वा कर्णादनन्तर:॥ ३६॥
सौभद्रमभ्ययात् तूर्णं दृढमुद्यम्य कार्मुकम्।
तत उच्चुक्रुशु: पार्थास्तेषां चानुचरा जना:।
वादित्राणि च संजघ्नु: सौभद्रं चापि तुष्टुवु:॥ ३७॥ |
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अनुवाद |
कर्ण को संकट में देखकर उसका छोटा भाई तुरन्त ही हाथ में सुदृढ़ धनुष लेकर सुभद्रापुत्र का सामना करने के लिए आया। उस समय सभी कुन्तीपुत्र और उनके सैनिक जोर-जोर से जयजयकार करने लगे, बाजे बजाने लगे और अभिमन्यु की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। |
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Seeing Karna in trouble, his younger brother immediately came with a strong bow in his hand to face the son of Subhadra. At that time all the sons of Kunti and their soldiers started shouting loudly, playing musical instruments and praising Abhimanyu profusely. |
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इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि कर्णदु:शासनपराभवे चत्वारिंशोऽध्याय:॥ ४०॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत अभिमन्युवधपर्वमें कर्ण तथा दु:शासनकी पराजयविषयक चालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ४०॥
(दाक्षिणात्य अधिक पाठके २ श्लोक मिलाकर कुल ३९ श्लोक हैं।) |
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