श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 200: श्रीकृष्णका भीमसेनको रथसे उतारकर नारायणास्त्रको शान्त करना, अश्वत्थामाका उसके पुन: प्रयोगमें अपनी असमर्थता बताना तथा अश्वत्थामाद्वारा धृष्टद्युम्नकी पराजय, सात्यकिका दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन—इन छ: महारथियोंको भगा देना फिर अश्वत्थामाद्वारा मालव, पौरव और चेदिदेशके युवराजका वध एवं भीम और अश्वत्थामाका घोर युद्ध तथा पाण्डव-सेनाका पलायन  »  श्लोक 113-114
 
 
श्लोक  7.200.113-114 
तां स मेघादिवोद्भूतां बाणवृष्टिं समन्तत:।
जलवृष्टिं महाघोरां तपान्त इव चिन्तयन्॥ ११३॥
द्रोणपुत्रवधप्रेप्सुर्भीमो भीमपराक्रम:।
अमुञ्चच्छरवर्षाणि प्रावृषीव बलाहक:॥ ११४॥
 
 
अनुवाद
वर्षा ऋतु में मेघों से होने वाली मूसलाधार वर्षा के समान अश्वत्थामा के द्वारा सब ओर से की जा रही बाणों की वर्षा को देखकर भयंकर पराक्रमी भीमसेन ने द्रोणपुत्र को मारने की इच्छा से मेघों के समान बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी।
 
Contemplating the shower of arrows from Ashvatthama falling from all sides like a torrential downpour from the clouds during the rainy season, Bhimasena of terrible prowess desired to kill Drona's son and began to shower arrows like rain clouds.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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