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श्लोक 7.165.33  |
एतस्मिन्नेव काले तु गृह्य पार्थ: पुनर्धनु:।
हार्दिक्यं छादयामास शरै: संनतपर्वभि:॥ ३३॥ |
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अनुवाद |
इस समय युधिष्ठिर ने पुनः अपना धनुष उठाया और कृतवर्मा को मुड़े हुए बाणों से आच्छादित कर दिया। |
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At this time Yudhishthira once again took up his bow and covered Kritavarma with arrows having bent ends. |
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