श्री महाभारत » पर्व 7: द्रोण पर्व » अध्याय 158: दुर्योधन और कर्णकी बातचीत, कृपाचार्यद्वारा कर्णको फटकारना तथा कर्णद्वारा कृपाचार्यका अपमान » श्लोक 59-61 |
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| | श्लोक 7.158.59-61  | दुर्योधनश्च द्रोणश्च शकुनिर्दुर्मुखो जय:॥ ५९॥
दु:शासनो वृषसेनो मद्रराजस्त्वमेव च।
सोमदत्तश्च भूरिश्च तथा द्रौणिर्विविंशति:॥ ६०॥
तिष्ठेयुर्दंशिता यत्र सर्वे युद्धविशारदा:।
जयेदेतान् नर: को नु शक्रतुल्यबलोऽप्यरि:॥ ६१॥ | | | अनुवाद | जहाँ दुर्योधन, द्रोण, शकुनि, दुर्मुख, जय, दु:शासन, वृषसेन, मद्रराज शल्य, आप स्वयं, सोमदत्त, भूरि, अश्वत्थामा और विविंशति-ये सभी युद्ध-कुशल योद्धा कवच पहने खड़े हों, वहाँ उन्हें कौन हरा सकता है? चाहे वह इन्द्र के समान बलशाली शत्रु ही क्यों न हो (वह उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता)। | | Where Duryodhana, Drona, Shakuni, Durmukh, Jai, Dushasana, Vrishasena, Madraraja Shalya, you yourself, Somdutta, Bhuri, Ashwatthama and Vivinshati - all these war-skilled warriors stand dressed in armor, who can defeat them there? Even if he is an enemy as strong as Indra (he can do no harm to him). |
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