श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 158: दुर्योधन और कर्णकी बातचीत, कृपाचार्यद्वारा कर्णको फटकारना तथा कर्णद्वारा कृपाचार्यका अपमान  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.158.30 
वृथा शूरा न गर्जन्ति शारदा इव तोयदा:।
सामर्थ्यमात्मनो ज्ञात्वा ततो गर्जन्ति पण्डिता:॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
शरद ऋतु के मेघों के समान वीर व्यर्थ गर्जना नहीं करते। बुद्धिमान पुरुष पहले अपने बल को समझते हैं और फिर गर्जना करते हैं।॥30॥
 
‘Like the clouds of autumn, the valiant do not roar in vain. The wise men first understand their strength and then roar.॥ 30॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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