श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय  »  श्लोक 87-88h
 
 
श्लोक  7.156.87-88h 
ततो मायाधरं द्रौणिर्घटोत्कचसुतं दिवि॥ ८७॥
मार्गणैरभिविव्याध घनं सूर्य इवांशुभि:।
 
 
अनुवाद
तत्पश्चात् द्रोणपुत्र ने आकाश में स्थित मायावी घटोत्कच पुत्र को अपने बाणों से उसी प्रकार घायल कर दिया, जैसे सूर्य अपनी किरणों से बादलों को पिघला देता है।
 
Thereafter Drona's son wounded the illusionary son of Ghatotkacha, who was situated in the sky, with his arrows in the same manner as the Sun melts the clouds with its rays. 87 1/2
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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