श्री महाभारत » पर्व 7: द्रोण पर्व » अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय » श्लोक 57-60 |
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| | श्लोक 7.156.57-60  | कार्ष्णायसं महाघोरमृक्षचर्मपरिच्छदम्॥ ५७॥
महान्तं रथमास्थाय त्रिंशन्नल्वान्तरान्तरम्।
विक्षिप्तयन्त्रसंनाहं महामेघौघनि:स्वनम्॥ ५८॥
युक्तं गजनिभैर्वाहैर्न हयैर्नापि वारणै:।
विक्षिप्तपक्षचरणविवृताक्षेण कूजता॥ ५९॥
ध्वजेनोच्छ्रितदण्डेन गृध्रराजेन राजितम्।
लोहितार्द्रपताकं तु अन्त्रमालाविभूषितम्॥ ६०॥ | | | अनुवाद | जिस विशाल रथ पर घटोत्कच आया था, वह काले लोहे का बना हुआ था और अत्यंत भयानक था। उस पर भालू की खाल मढ़ी हुई थी। उसके भीतर की लंबाई और चौड़ाई तीस नलवा (बारह हजार हाथ) थी। उसमें यंत्र और कवच रखे हुए थे। जब वह चलता था, तो बादलों के घनघोर बादल के समान गम्भीर ध्वनि करता था। उसमें हाथी जैसे विशाल वाहन जुते हुए थे, जो वास्तव में न घोड़े थे, न हाथी। उस रथ का ध्वज दंड बहुत ऊँचा था। उस ध्वज पर पंख और पंजे फैलाए, आँखें फाड़े और टर्राता हुआ एक गिद्धराज सुशोभित था। उसकी ध्वजा रक्त से सनी हुई थी और वह रथ आँतों की माला से सुशोभित था। | | The huge chariot on which Ghatotkacha had come was made of black iron and was extremely fearsome. Bear skin was covered on it. The length and breadth of its interior was thirty Nalva* (twelve thousand hands). Machines and armour were kept in it. When it moved, it made a deep sound like a heavy cloud of clouds. Huge elephant-like vehicles were harnessed to it, which in reality were neither horses nor elephants. The flag pole of that chariot was very high. That flag was decorated with a vulture king with wings and claws spread out, staring wide-eyed and croaking. Its banner was soaked in blood and that chariot was decorated with a garland of intestines. 57-60. |
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