श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय  »  श्लोक 190
 
 
श्लोक  7.156.190 
तं सिद्धगन्धर्वपिशाचसंघा
नागा: सुपर्णा: पितरो वयांसि।
रक्षोगणा भूतगणाश्च द्रौणि-
मपूजयन्नप्सरस: सुराश्च॥ १९०॥
 
 
अनुवाद
उस समय सिद्ध, गन्धर्व, भूत, सर्प, सुपर्ण, पितर, पक्षी, राक्षस, प्रेत, अप्सराएँ और देवताओं ने भी द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की खूब प्रशंसा की।।190।।
 
At that time, the Siddhas, Gandharvas, ghosts, serpents, Suparnas, ancestors, birds, demons, ghosts, Apsaras and gods also praised Drona's son Ashwatthama profusely. 190.
 
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि रात्रियुद्धे षट्पञ्चाशदधिकशततमोऽध्याय:॥ १५६॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत घटोत्कचवधपर्वमें रात्रियुद्धविषयक एक सौ छप्पनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १५६॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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