श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय  »  श्लोक 187-188
 
 
श्लोक  7.156.187-188 
तत: पराङ्मुखनृपं सैन्यं यौधिष्ठिरं नृप॥ १८७॥
पराजित्य रणे वीरो द्रोणपुत्रो ननाद ह।
पूजित: सर्वभूतेषु तव पुत्रैश्च भारत॥ १८८॥
 
 
अनुवाद
नरेश्वर ! तब युधिष्ठिर की सेना के सभी राजा युद्ध से विमुख हो गए । उस सेना को परास्त करके द्रोणपुत्र वीर रणभूमि में गर्जना करने लगे । उस समय समस्त प्राणियों में अश्वत्थामा का बड़ा सम्मान था । आपके पुत्र भी उनका बड़ा आदर करते थे । 187-188॥
 
Nareshwar! Then all the kings of Yudhishthira's army turned away from the war. After defeating that army, the brave son of Drona started roaring in the battlefield. India At that time Ashwatthama was greatly respected among all the living beings. Your sons also respected him greatly. 187-188॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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