श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय  »  श्लोक 172
 
 
श्लोक  7.156.172 
क्षिप्तै: काञ्चनदण्डैश्च नृपच्छत्रै: क्षितिर्बभौ।
द्यौरिवोदितचन्द्रार्का ग्रहाकीर्णा युगक्षये॥ १७२॥
 
 
अनुवाद
यह पृथ्वी, जहाँ-तहाँ पड़े हुए स्वर्णमय दण्डों से युक्त राजाओं के छत्रों से आच्छादित होकर, प्रलयकाल में उदित होते हुए सूर्य, चन्द्रमा और तारों से भरे हुए आकाश के समान प्रतीत हो रही थी।।172।।
 
This earth, covered with the umbrellas of kings with golden staffs lying here and there, looked like the sky filled with the sun, moon and stars rising during the time of deluge. 172.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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