श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय  »  श्लोक 134
 
 
श्लोक  7.156.134 
विधम्य राक्षसान् बाणै: साश्वसूतरथद्विपान्।
ददाह भगवान् वह्निर्भूतानीव युगक्षये॥ १३४॥
 
 
अनुवाद
जैसे प्रलयकाल में अग्निदेव सम्पूर्ण प्राणियों को जलाकर भस्म कर देते हैं, वैसे ही अश्वत्थामा ने अपने बाणों से घोड़ों, सारथियों, रथियों और हाथियों सहित बहुत से राक्षसों को जलाकर भस्म कर दिया॥134॥
 
Just as Lord Agni burns all living beings to ashes during the time of dissolution, similarly Ashvatthama burned to ashes many demons along with their horses, charioteers, chariots and elephants with his arrows.॥ 134॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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