श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय  »  श्लोक 130
 
 
श्लोक  7.156.130 
भूयश्चाञ्जलिकेनाथ मार्गणेन महाप्रभम्।
द्रौणिहस्तस्थितं चापं चिच्छेदाशु घटोत्कच:॥ १३०॥
 
 
अनुवाद
इतने में ही घटोत्कचना ने पुनः शीघ्रतापूर्वक अंजलीक नामक बाण से अश्वत्थामा के हाथ का अत्यन्त तेजस्वी धनुष काट डाला ॥130॥
 
Meanwhile, Ghatotkachna again quickly cut off the very bright bow in the hand of Ashwatthama with the arrow named Anjalik. 130॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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