श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय  »  श्लोक 106
 
 
श्लोक  7.156.106 
तमञ्जनगिरिप्रख्यं द्रौणिर्दृष्ट्वा महीधरम्।
प्रपतद्भिश्च बहुभि: शस्त्रसंघैर्न विव्यथे॥ १०६॥
 
 
अनुवाद
अंजनगिरि के समान उस काले पर्वत को देखकर और वहाँ से गिरते हुए अनेक अस्त्रों से घायल होकर भी द्रोणपुत्र अश्वत्थामा को कोई चिन्ता नहीं हुई ॥106॥
 
Even after seeing that black mountain resembling Anjanagiri and being wounded by the numerous weapons falling from there, Drona's son Ashwatthama was not distressed. ॥106॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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