श्री महाभारत  »  पर्व 7: द्रोण पर्व  »  अध्याय 156: सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय  »  श्लोक 104
 
 
श्लोक  7.156.104 
निशाम्य निहतां मायां द्रौणिना रणमानिना।
घटोत्कचस्ततो मायां ससर्जान्तर्हित: पुन:॥ १०४॥
 
 
अनुवाद
जब घटोत्कच ने युद्ध-अभिमानी अश्वत्थामा द्वारा अपनी माया को नष्ट होते देखा, तो वह अदृश्य हो गया और पुनः दूसरी माया रची।104.
 
When Ghatotkacha saw his illusion destroyed by the war-proud Ashvatthama, he became invisible and again created another illusion. 104.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.