श्री महाभारत  »  पर्व 6: भीष्म पर्व  »  अध्याय 108: दसवें दिन उभयपक्षकी सेनाका रणके लिये प्रस्थान तथा भीष्म और शिखण्डीका समागम एवं अर्जुनका शिखण्डीको भीष्मका वध करनेके लिये उत्साहित करना  »  श्लोक 57-60h
 
 
श्लोक  6.108.57-60h 
द्रोणं च द्रोणपुत्रं च कृपं चाथ सुयोधनम्।
चित्रसेनं विकर्णं च सैन्धवं च जयद्रथम्॥ ५७॥
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ काम्बोजं च सुदक्षिणम्।
भगदत्तं तथा शूरं मागधं च महाबलम्॥ ५८॥
सौमदत्तिं तथा शूरमार्ष्यशृङ्गिं च राक्षसम्।
त्रिगर्तराजं च रणे सह सर्वैर्महारथै:॥ ५९॥
अहमावारयिष्यामि वेलेव मकरालयम्।
 
 
अनुवाद
मैं द्रोणाचार्य, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, कृपाचार्य, दुर्योधन, चित्रसेन, विकर्ण, सिन्धुराज जयद्रथ, अवंती के राजकुमार विन्द-अनुविन्द, कम्बोजराज सुदक्षिण, वीर भगदत्त, पराक्रमी मगधराज, सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा, राक्षस अलम्बुष तथा त्रिगर्तराज सुशर्मा सहित सभी महारथियों को युद्धभूमि में उसी प्रकार रखूंगा, जैसे समुद्रतट तथा समुद्र। उसे बढ़ने नहीं देता. 57—59 1/2॥
 
I will keep Dronacharya, Drona's son Ashwatthama, Kripacharya, Duryodhana, Chitrasena, Vikarna, Sindhuraj Jayadratha, Avanti's princes Vind-Anuvind, Kambojraj Sudakshin, brave Bhagadatt, mighty Magadharaj, Somadatta's son Bhurishrava, demon Alambush and Trigartaraj Susharma along with all the great warriors in the battlefield in the same way as the coast and the sea. Doesn't let it grow. 57—59 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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