श्री महाभारत  »  पर्व 5: उद्योग पर्व  »  अध्याय 178: अम्बा और परशुरामजीका संवाद, अकृतव्रणकी सलाह, परशुराम और भीष्मकी रोषपूर्ण बातचीत तथा उन दोनोंका युद्धके लिये कुरुक्षेत्रमें उतरना  »  श्लोक 77-78
 
 
श्लोक  5.178.77-78 
पाण्डुरेणातपत्रेण ध्रियमाणेन मूर्धनि॥ ७७॥
पाण्डुरैश्चापि व्यजनैर्वीज्यमानो नराधिप।
शुक्लवासा: सितोष्णीष: सर्वशुक्लविभूषण:॥ ७८॥
 
 
अनुवाद
हे मनुष्यों के स्वामी! उस समय मेरे सिर पर श्वेत छत्र रखा गया और मेरे दोनों ओर श्वेत पंखे लहराए गए। मेरे वस्त्र, मेरी पगड़ी और मेरे सभी आभूषण श्वेत रंग के थे। 77-78।
 
O Lord of men! At that time a white umbrella was held over my head and white fans were waved on both sides of me. My clothes, my turban and all my ornaments were of white colour. 77-78.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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