श्री महाभारत  »  पर्व 5: उद्योग पर्व  »  अध्याय 178: अम्बा और परशुरामजीका संवाद, अकृतव्रणकी सलाह, परशुराम और भीष्मकी रोषपूर्ण बातचीत तथा उन दोनोंका युद्धके लिये कुरुक्षेत्रमें उतरना  »  श्लोक 47-48
 
 
श्लोक  5.178.47-48 
अयं चापि विशुद्धात्मन् पुराणे श्रूयते विभो।
मरुत्तेन महाबुद्धे गीत: श्लोको महात्मना॥ ४७॥
‘‘गुरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानत:।
उत्पथप्रतिपन्नस्य परित्यागो विधीयते’’॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
हे शुद्धहृदय और परम बुद्धिमान राम! पुराणों में महात्मा मरुत्त द्वारा कहा गया यह श्लोक सुनने को मिलता है कि यदि गुरु भी अभिमान के कारण उचित-अनुचित को न समझकर कुमार्ग पर चल पड़ता है, तो वह त्याग दिया जाता है। ॥47-48॥
 
O pure-hearted and most intelligent Ram! In the Puranas, we hear this verse spoken by Mahatma Marutta that if even a Guru, out of pride, does not understand what is right and what is wrong and takes to the wrong path, then he is abandoned. ॥ 47-48॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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