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श्लोक 5.163.56-57  |
तत: कर्णसमादिष्टा दूता: संत्वरिता रथै:।
उष्ट्रवामीभिरप्यन्ये सदश्वैश्च महाजवै:॥ ५६॥
तूर्णं परिययु: सेनां कृत्स्नां कर्णस्य शासनात्।
आज्ञापयन्तो राज्ञश्च योग: प्रागुदयादिति॥ ५७॥ |
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अनुवाद |
तदनन्तर कर्ण के भेजे हुए दूत बड़ी शीघ्रता से रथों, ऊँटों तथा अत्यन्त वेगवान घोड़ों पर सवार होकर समस्त सेना के पास पहुँचे और कर्ण की आज्ञानुसार राजा का आदेश सबको सुनाने लगे कि अगले दिन सूर्योदय से पूर्व युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। |
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Thereafter, the messengers sent by Karna in great haste went to the entire army riding on chariots, camels and very swift horses and as per Karna's orders, began to convey the King's orders to everyone that they must be ready for battle the next day before sunrise. 56-57. |
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इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि उलूकदूतागमनपर्वणि उलूकापयाने त्रिषष्ट्यधिकशततमोऽध्याय:॥ १६३॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत उलूकदूतागमनपर्वमें उलूकके लौट जानेसे सम्बन्ध
रखनेवाला एक सौ तिरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १६३॥ |
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