श्री महाभारत  »  पर्व 4: विराट पर्व  »  अध्याय 71: विराटको अन्य पाण्डवोंका भी परिचय प्राप्त होना तथा विराटके द्वारा युधिष्ठिरको राज्य समर्पण करके अर्जुनके साथ उत्तराके विवाहका प्रस्ताव करना  »  श्लोक 28-29
 
 
श्लोक  4.71.28-29 
वैशम्पायन उवाच
ततो विराट: परमाभितुष्ट:
समेत्य राजा समयं चकार।
राज्यं च सर्वं विससर्ज तस्मै
सदण्डकोशं सपुरं महात्मा॥ २८॥
पाण्डवांश्च तत: सर्वान् मत्स्यराज: प्रतापवान्।
धनंजयं पुरस्कृत्य दिष्टॺा दिष्टॺेति चाब्रवीत्॥ २९॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - हे राजन! तत्पश्चात राजा विराट बड़े हर्ष के साथ अपने पुत्र से मिले और कुछ विचार-विमर्श के पश्चात् उस महापुरुष ने अपना सम्पूर्ण राज्य, जिसमें राजकाज, कोष और नगर आदि सम्मिलित थे, युधिष्ठिर को समर्पित कर दिया। तब महाबली मत्स्यराज अर्जुन को आगे करके समस्त पाण्डवों से मिले और कहने लगे कि यह हमारा बड़ा सौभाग्य है, यह हमारा बड़ा सौभाग्य है कि हम आप सब लोगों से मिले हैं॥ 28-29॥
 
Vaishampayana says - O King! Thereafter King Virat met his son with great joy and after some discussion, then that great man dedicated his entire kingdom including the staff, treasury and city etc. to Yudhishthira. Then the mighty Matsyaraj kept Arjuna in front and met all the Pandavas and started saying that it is our great fortune, it is our great fortune that we have met you all.॥ 28-29॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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