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श्लोक 4.53.24-25  |
तस्य शङ्खस्य शब्देन रथनेमिस्वनेन च।
गाण्डीवस्य च घोषेण पृथिवी समकम्पत॥ २४॥
अमानुषाणां भूतानां तेषां च ध्वजवासिनाम्।
ऊर्ध्वं पुच्छान् विधुन्वाना रेभमाणा: समन्तत:।
गाव: प्रतिन्यवर्तन्त दिशमास्थाय दक्षिणाम्॥ २५॥ |
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अनुवाद |
अर्जुन के शंख की ध्वनि, रथ के पहियों की घरघराहट, गाण्डीव धनुष की टंकार और ध्वजा में स्थित मानवेतर प्राणियों के भयंकर कोलाहल से पृथ्वी काँप उठी। गौएँ अपनी पूँछ उठाकर और रंभाती हुई सब दिशाओं से पीछे मुड़कर दक्षिण दिशा की ओर भागने लगीं। |
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The earth trembled with the sound of Arjuna's conch, the whirring of the wheels of the chariot, the twirling of the Gandiva bow and the terrifying uproar of the non-human beings residing in the flag. The cows, raising their tails and wagging their mooings, turned back from all directions and ran towards the south. |
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इति श्रीमहाभारते विराटपर्वणि गोहरणपर्वणि उत्तरगोग्रहे गोनिवर्तने त्रिपञ्चाशत्तमोऽध्याय:॥ ५३॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्वके अन्तर्गत गोहरणपर्वमें उत्तरगोग्रहके समय गौओंके लौटनेसे सम्बन्ध रखनेवाला तिरपनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ५३॥
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ १/२ श्लोक मिलाकर कुल २६ १/२ श्लोक हैं।) |
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