श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 91: महर्षि लोमशका आगमन और युधिष्ठिरसे अर्जुनके पाशुपत आदि दिव्यास्त्रोंकी प्राप्तिका वर्णन तथा इन्द्रका संदेश सुनाना  »  श्लोक 17-19
 
 
श्लोक  3.91.17-19 
भवान् मनुष्यलोकेऽपि गमिष्यति न संशय:।
ब्रूयाद् युधिष्ठिरं तत्र वचनान्मे द्विजोत्तम॥ १७॥
आगमिष्यति ते भ्राता कृतास्त्र: क्षिप्रमर्जुन:।
सुरकार्यं महत् कृत्वा यदशक्यं दिवौकसाम्॥ १८॥
तपसापि त्वमात्मानं योजय भ्रातृभि: सह।
तपसो हि परं नास्ति तपसा विन्दते महत्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
'उन्होंने मुझसे कहा - द्विजोत्तम! इसमें संदेह नहीं कि तुम घूमते-घूमते मनुष्यलोक में भी जाओगे; अतः मेरे कहने पर तुम राजा युधिष्ठिर के पास जाओ और उनसे यह कहो - 'राजन्! तुम्हारा भाई अर्जुन शस्त्रविद्या में निपुण हो गया है। अब वह देवताओं का एक महान कार्य, जिसे स्वयं देवता भी नहीं कर सकते, सम्पन्न करके शीघ्र ही तुम्हारे पास आएगा; तब तक तुम भी अपने भाइयों के साथ तपस्या में लग जाओ; क्योंकि तपस्या से बढ़कर कोई दूसरा साधन नहीं है। तपस्या महान फल देती है।'
 
‘He said to me – Dvijottam! There is no doubt that while roaming around you will also go to the world of humans; therefore on my request you should go to King Yudhishthira and tell him this – ‘King! Your brother Arjun has become proficient in the art of weapons. Now he will accomplish a great task of the gods, which the gods themselves cannot do, and will soon come to you; until then you should also engage yourself in penance along with your brothers; because there is no other means better than penance. Penance yields great results.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.