श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 68: विदर्भराजका नल-दमयन्तीकी खोजके लिये ब्राह्मणोंको भेजना, सुदेव ब्राह्मणका चेदिराजके भवनमें जाकर मन-ही-मन दमयन्तीके गुणोंका चिन्तन और उससे भेंट करना  »  श्लोक 4-5h
 
 
श्लोक  3.68.4-5h 
अग्रहारांश्च दास्यामि ग्रामं नगरसम्मितम्।
न चेच्छक्याविहानेतुं दमयन्ती नलोऽपि वा॥ ४॥
ज्ञातमात्रेऽपि दास्यामि गवां दशशतं धनम्।
 
 
अनुवाद
मैं उन्हें जीविका के लिए अग्रहार (कर-मुक्त भूमि) तथा आय की दृष्टि से नगर के समान एक ग्राम भी दूँगा। यदि नल या दमयन्ती को यहाँ लाना संभव न हो, तो यदि मुझे उनका पता भी चल जाए, तो मैं एक हजार गौएँ दान करूँगा।॥4 1/2॥
 
‘I will also give them agrahara (tax-free land) for their livelihood and a village which will be equal to a city in terms of income. If it is not possible to bring either Nala or Damayanti here, then even if I get to know about them, I will donate one thousand cows.’॥ 4 1/2॥
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