श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 68: विदर्भराजका नल-दमयन्तीकी खोजके लिये ब्राह्मणोंको भेजना, सुदेव ब्राह्मणका चेदिराजके भवनमें जाकर मन-ही-मन दमयन्तीके गुणोंका चिन्तन और उससे भेंट करना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.68.10 
सुदेव उवाच
यथेयं मे पुरा दृष्टा तथारूपेयमङ्गना।
कृतार्थोऽस्म्यद्य दृष्ट्वेमां लोककान्तामिव श्रियम्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
सुदेव ने मन ही मन कहा, "यह शुभ राजकुमारी वैसी ही है जैसी मैंने पहले देखी थी। आज मैं इस भीमाकुमारी को देखकर बहुत संतुष्ट हूँ जो सुन्दर देवी लक्ष्मी के समान है।"
 
Sudeva said to himself, "This auspicious princess is the same as I had seen her earlier. I am very satisfied today after seeing this Bhimakumari who is like the beautiful goddess Lakshmi."
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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