श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 28: द्रौपदीद्वारा प्रह्लाद-बलि-संवादका वर्णन—तेज और क्षमाके अवसर  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.28.4 
श्रेयो यदत्र धर्मज्ञ ब्रूहि मे तदसंशयम्।
करिष्यामि हि तत् सर्वं यथावदनुशासनम्॥ ४॥
 
 
अनुवाद
हे धर्म के ज्ञाता! कृपया मुझे बताइए कि इनमें से कौन सा श्रेष्ठ है। मैं आपकी सभी आज्ञाओं का यथावत् पालन करूँगा। ॥4॥
 
O knower of Dharma! Please tell me which of these is the best. I will follow all your instructions as they are. ॥ 4॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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