श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 28: द्रौपदीद्वारा प्रह्लाद-बलि-संवादका वर्णन—तेज और क्षमाके अवसर  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.28.13 
क्षमिणं तादृशं तात ब्रुवन्ति कटुकान्यपि।
प्रेष्या: पुत्राश्च भृत्याश्च तथोदासीनवृत्तय:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
पिता जी! उपर्युक्त क्षमाशील पुरुष को उसके सेवक, पुत्र, सेवक और उदासीन भाव वाले लोग भी कठोर वचन बोलते हैं। ॥13॥
 
Father! The above-mentioned forgiving person is also spoken harshly by his servants, sons, servants and people with an indifferent attitude. ॥13॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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