श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 28: द्रौपदीद्वारा प्रह्लाद-बलि-संवादका वर्णन—तेज और क्षमाके अवसर  »  श्लोक 10-11
 
 
श्लोक  3.28.10-11 
यानं वस्त्राण्यलंकाराञ्छयनान्यासनानि च।
भोजनान्यथ पानानि सर्वोपकरणानि च॥ १०॥
आददीरन्नधिकृता यथाकाममचेतस:।
प्रदिष्टानि च देयानि न दद्युर्भर्तृशासनात्॥ ११॥
 
 
अनुवाद
नाना कार्यों के लिए नियुक्त मूर्ख सेवक क्षमाशील स्वामी के रथ, वस्त्र, आभूषण, शय्या, आसन, भोजन, पेय आदि समस्त भौतिक वस्तुओं का अपनी इच्छानुसार उपयोग करते रहते हैं और स्वामी के आदेश देने पर भी किसी को देने योग्य वस्तुएँ नहीं देते॥10-11॥
 
The foolish servants appointed for various tasks keep on using the chariot, clothes, ornaments, bed, seat, food, drink and all the material things of the forgiving master according to their own wishes and do not give the things that are to be given to anyone even when the master orders them.॥ 10-11॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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