श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 269: पाण्डवोंका आश्रमपर लौटना और धात्रेयिकासे द्रौपदीहरणका वृत्तान्त जानकर जयद्रथका पीछा करना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.269.2 
ततो मृगव्यालगणानुकीर्णं
महावनं तद् विहगोपघुष्टम्।
भ्रातॄंश्च तानभ्यवदद् युधिष्ठिर:
श्रुत्वा गिरो व्याहरतां मृगाणाम्॥ २॥
 
 
अनुवाद
उस समय भयंकर पशुओं और सर्पों से भरा हुआ वह महान वन सहसा पक्षियों की चिंघाड़ से गूंज उठा और वन्य पशु भी भयभीत होकर गरजने लगे। उन सबकी आवाजें सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से कहा -॥2॥
 
At that time that great forest, full of ferocious animals and snakes, suddenly resounded with the shrieks of birds and the wild animals too were frightened and started wailing. Hearing all their voices, Dharmaraja Yudhishthira said to his brothers -॥2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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