श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 262: दुर्योधनका महर्षि दुर्वासाको आतिथ्यसत्कारसे संतुष्ट करके उन्हें युधिष्ठिरके पास भेजकर प्रसन्न होना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.262.5 
वैशम्पायन उवाच
श्रुत्वा तेषां तथा वृत्तिं नगरे वसतामिव।
दुर्योधनो महाराज तेषु पापमरोचयत्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायन बोले: महाराज! जब दुर्योधन ने सुना कि पाण्डव वन में नगरवासियों की भाँति दान और पुण्य करते हुए सुखपूर्वक रह रहे हैं, तब उसने उन्हें हानि पहुँचाने का विचार किया॥5॥
 
Vaishmpayana said: Maharaj! When Duryodhan heard that the Pandavas were living happily in the forest, performing charity and pious deeds, just as the residents of cities do, then he thought of harming them. ॥ 5॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.