श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 262: दुर्योधनका महर्षि दुर्वासाको आतिथ्यसत्कारसे संतुष्ट करके उन्हें युधिष्ठिरके पास भेजकर प्रसन्न होना  »  श्लोक 21-23h
 
 
श्लोक  3.262.21-23h 
यदा च राजपुत्री सा सुकुमारी यशस्विनी॥ २१॥
भोजयित्वा द्विजान् सर्वान् पतींश्च वरवर्णिनी।
विश्रान्ता च स्वयं भुक्त्वा सुखासीना भवेद् यदा॥ २२॥
तदा त्वं तत्र गच्छेथा यद्यनुग्राह्यता मयि।
 
 
अनुवाद
यदि आप मुझ पर दया करते हैं, तो मेरी प्रार्थना से आप उस समय वहाँ अवश्य जाएँ, जब परम सुन्दरी, यशस्वी और सुकुमारी राजकुमारी द्रौपदी समस्त ब्राह्मणों और अपने पाँचों पतियों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करके सुखपूर्वक बैठी हुई विश्राम कर रही हो।॥21-22 1/2॥
 
If you have mercy on me, then on my request you must go there at such a time when the extremely beautiful, famous and delicate Princess Draupadi, after having fed all the Brahmins and her five husbands, is sitting comfortably and resting after having eaten herself.'॥ 21-22 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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