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श्लोक 3.262.16  |
दुर्वासा उवाच
वरं वरय भद्रं ते यत् ते मनसि वर्तते।
मयि प्रीते तु यद् धर्म्यं नालभ्यं विद्यते तव॥ १६॥ |
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अनुवाद |
दुर्वासा बोले, "हे राजन! आपका कल्याण हो। आप जो चाहें वर मांग लें। यदि मैं प्रसन्न हो जाऊँ तो धर्मसम्मत कोई भी वस्तु आपको अप्राप्य नहीं रहेगी।" |
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Durvasa said, "O King! May you be blessed. Ask for any boon you desire. If I am pleased, any object that is in accordance with Dharma will not be unattainable to you." 16. |
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