श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 262: दुर्योधनका महर्षि दुर्वासाको आतिथ्यसत्कारसे संतुष्ट करके उन्हें युधिष्ठिरके पास भेजकर प्रसन्न होना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.262.16 
दुर्वासा उवाच
वरं वरय भद्रं ते यत् ते मनसि वर्तते।
मयि प्रीते तु यद् धर्म्यं नालभ्यं विद्यते तव॥ १६॥
 
 
अनुवाद
दुर्वासा बोले, "हे राजन! आपका कल्याण हो। आप जो चाहें वर मांग लें। यदि मैं प्रसन्न हो जाऊँ तो धर्मसम्मत कोई भी वस्तु आपको अप्राप्य नहीं रहेगी।"
 
Durvasa said, "O King! May you be blessed. Ask for any boon you desire. If I am pleased, any object that is in accordance with Dharma will not be unattainable to you." 16.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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