श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 262: दुर्योधनका महर्षि दुर्वासाको आतिथ्यसत्कारसे संतुष्ट करके उन्हें युधिष्ठिरके पास भेजकर प्रसन्न होना  »  श्लोक 13-14h
 
 
श्लोक  3.262.13-14h 
अकस्मादेत्य च ब्रूते भोजयास्मांस्त्वरान्वित:।
कदाचिच्च निशीथे स उत्थाय निकृतौ स्थित:॥ १३॥
पूर्ववत्कारयित्वान्नं न भुङ्‍‍क्ते गर्हयन् स्म स:।
 
 
अनुवाद
फिर अचानक कहीं से आकर कहता, ‘जल्दी परोसो।’ कभी-कभी आधी रात को उठकर उसे अपमानित करने का निश्चय करके पहले जैसा भोजन तैयार करवाता और फिर भोजन की निन्दा करके उसे खाने से इन्कार कर देता।॥13 1/2॥
 
Then, suddenly coming from somewhere, he would say, 'Serve us quickly.' Sometimes, getting up in the middle of the night and determined to humiliate him, he would get food prepared as before and then, criticising the food, would refuse to eat it.॥ 13 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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