श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 262: दुर्योधनका महर्षि दुर्वासाको आतिथ्यसत्कारसे संतुष्ट करके उन्हें युधिष्ठिरके पास भेजकर प्रसन्न होना  »  श्लोक 1-4
 
 
श्लोक  3.262.1-4 
जनमेजय उवाच
वसत्स्वेवं वने तेषु पाण्डवेषु महात्मसु।
रममाणेषु चित्राभि: कथाभिर्मुनिभि: सह॥ १॥
सूर्यदत्ताक्षयान्नेव कृष्णाया भोजनावधि।
ब्राह्मणांस्तर्पमाणेषु ये चान्नार्थमुपागता:॥ २॥
धार्तराष्ट्रा दुरात्मान: सर्वे दुर्योधनादय:।
कथं तेष्वन्ववर्तन्त पापाचारा महामुने॥ ३॥
दु:शासनस्य कर्णस्य शकुनेश्च मते स्थिता:।
एतदाचक्ष्व भगवन् वैशम्पायन पृच्छत:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
जनमेजय ने पूछा, "हे महामुनि वैशम्पायन! जब महान पाण्डव इस प्रकार वन में रहकर ऋषियों के साथ विचित्र कथाओं और चर्चाओं से मनोरंजन करते थे और द्रौपदी के भोजन करने तक सूर्य द्वारा प्रदत्त अक्षयपात्र से प्राप्त अन्न से अपने यहाँ भोजन के लिए आये ब्राह्मणों को भोजन कराते थे, तब उन दिनों पापी तथा शकुनि की सलाह मानने वाले धृतराष्ट्र के पुत्र दु:शासन, कर्ण और दुष्टबुद्धि दुर्योधन उनके साथ कैसा व्यवहार करते थे?" हे प्रभु! मेरे प्रश्न के अनुसार ये सब बातें मुझे बताने की कृपा करें। 1-4.
 
Janamejaya asked, "O great sage Vaishampayana! When the great Pandavas stayed in the forest like this and entertained themselves with strange tales and discussions with the sages and till Draupadi had eaten, they fed the Brahmins who came to them for food with the food obtained from the Akshaya Patra given by the Sun, how did the sons of Dhritarashtra, such as Dushasan, Karna and the evil-minded Duryodhan, who were sinners and followed the advice of Shakuni, behave with them in those days?" O Lord! Please tell me all these things according to my question. 1-4.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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