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श्लोक 3.259.4-5  |
न सुष्वाप सुखं राजा हृदि शल्यैरिवार्पितै:।
दौरात्म्यमनुपश्यंस्तत् काले द्यूतोद्भवस्य हि॥ ४॥
संस्मरन् परुषा वाच: सूतपुत्रस्य पाण्डव:।
नि:श्वासपरमो दीनो बिभ्रत् कोपविषं महत्॥ ५॥ |
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अनुवाद |
इस चिन्ता के कारण राजा युधिष्ठिर रात्रि को सुखपूर्वक सो नहीं पाते थे। ये बातें उनके हृदय में काँटों की भाँति चुभती रहती थीं। जुए के कारण शकुनि आदि की दुष्टता को देखकर और सूतपुत्र कर्ण के कठोर वचनों का स्मरण करके पाण्डु नन्दन युधिष्ठिर दीनतापूर्वक दीर्घ श्वास लेते और हृदय में महान क्रोध का विष धारण करते रहते थे। |
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Due to this worry, King Yudhishthir could not sleep comfortably at night. These things used to hurt him like thorns pricking in his heart. Looking at the wickedness of Shakuni etc. due to gambling and remembering the harsh words of Suta's son Karna, Pandu Nandan Yudhishthir kept taking long breaths with humility and kept the poison of great anger in his heart. 4-5॥ |
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