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श्लोक 3.259.35  |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्।
व्रीहिद्रोणपरित्यागाद् यत् फलं प्राप मुद्गल:॥ ३५॥ |
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अनुवाद |
ज्ञानी लोग इस प्राचीन कथा का उदाहरण देते हैं कि ऋषि मुद्गल ने एक द्रोण अन्न दान करके महान लाभ प्राप्त किया था। |
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Knowledgeable people cite the example of this ancient story that the sage Mudgala achieved great benefits by donating one Drona of grain. 35. |
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इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि व्रीहिद्रौणिकपर्वणि दानदुष्करत्वकथने एकोनषष्टॺधिकद्विशततमोऽध्याय:॥ २५९॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत व्रीहिद्रौणिकपर्वमें दानकी दुष्करताका प्रतिपादनविषयक दो सौ उनसठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २५९॥
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका १/२ श्लोक मिलाकर कुल ३५ १/२ श्लोक हैं) |
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