श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 259: युधिष्ठिरकी चिन्ता, व्यासजीका पाण्डवोंके पास आगमन और दानकी महत्ताका प्रतिपादन  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  3.259.34 
पात्रे दानं स्वल्पमपि काले दत्तं युधिष्ठिर।
मनसा हि विशुद्धेन प्रेत्यानन्तफलं स्मृतम्॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
युधिष्ठिर! यदि शुद्ध मन से उचित समय पर सुपात्र को थोड़ा सा भी दान दिया जाए, तो वह परलोक में अनन्त फल देने वाला माना गया है ॥ 34॥
 
Yudhishthira! If even a small donation is made with a pure heart at the right time to a deserving person, then it is believed to yield eternal fruits in the next world. ॥ 34॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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