श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 259: युधिष्ठिरकी चिन्ता, व्यासजीका पाण्डवोंके पास आगमन और दानकी महत्ताका प्रतिपादन  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.259.23 
दान्त: शमपर: शश्वत् परिक्लेशं न विन्दति।
न च तप्यति दान्तात्मा दृष्ट्वा परगतां श्रियम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
जो मनुष्य सदैव अपनी इन्द्रियों को वश में रखता है और अपने मन को वश में रखता है, उसे कभी किसी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता। जिसने अपने मन को वश में कर लिया है, वह दूसरों का धन देखकर व्याकुल नहीं होता।॥23॥
 
‘He who always controls his senses and restrains his mind never has to face any trouble. He who has controlled his mind does not get upset on seeing the wealth of others.’॥ 23॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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