श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 259: युधिष्ठिरकी चिन्ता, व्यासजीका पाण्डवोंके पास आगमन और दानकी महत्ताका प्रतिपादन  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.259.2 
फलमूलाशनास्ते हि सुखार्हां दु:खमुत्तमम्।
प्राप्तकालमनुध्यान्त: सेहिरे वरपूरुषा:॥ २॥
 
 
अनुवाद
वे फल-मूल खाकर जीवन निर्वाह करते थे। सुख भोगने में समर्थ होते हुए भी उन्होंने महान कष्ट सहे और यह सोचकर कि यह हमारा दुःख का समय है और इसे धैर्यपूर्वक सहन करना चाहिए, उन्होंने चुपचाप सब कष्ट सहन किए। उनमें ऐसी बुद्धि थी, क्योंकि वे सभी श्रेष्ठ पुरुष थे॥2॥
 
They lived on fruits and roots. Despite being capable of enjoying pleasures, they suffered great hardships and thinking that this is our time of suffering and it should be endured patiently, they silently endured all the sufferings. They had such wisdom because they were all the best men.॥2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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