श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 259: युधिष्ठिरकी चिन्ता, व्यासजीका पाण्डवोंके पास आगमन और दानकी महत्ताका प्रतिपादन  »  श्लोक 16-17h
 
 
श्लोक  3.259.16-17h 
तपसो हि परं नास्ति तपसा विन्दते महत्॥ १६॥
नासाध्यं तपस: किंचिदिति बुद्धॺस्व भारत।
 
 
अनुवाद
'भारत! तपस्या से बढ़कर कोई श्रेष्ठ साधन नहीं है। तपस्या से मनुष्य परमपद (परमात्मा) को प्राप्त करता है। तुम्हें यह भली-भाँति जान लेना चाहिए कि तपस्या से कुछ भी असंभव नहीं है।'
 
‘Bharat! There is no better means than penance. Through penance a man attains the supreme position (God). You should know this very well that nothing is impossible through penance. 16 1/2
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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