श्री महाभारत » पर्व 3: वन पर्व » अध्याय 259: युधिष्ठिरकी चिन्ता, व्यासजीका पाण्डवोंके पास आगमन और दानकी महत्ताका प्रतिपादन » श्लोक 12-13 |
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| | श्लोक 3.259.12-13  | युधिष्ठिर महाबाहो शृणु धर्मभृतां वर॥ १२॥
नातप्ततपसो लोके प्राप्नुवन्ति महासुखम्।
सुखदु:खे हि पुरुष: पर्यायेणोपसेवते॥ १३॥ | | | अनुवाद | हे महाबाहु युधिष्ठिर, धर्मात्माओं में श्रेष्ठ! मेरी बात सुनो, जिन्होंने इस संसार में तप नहीं किया है, वे महान सुख प्राप्त नहीं कर सकते। मनुष्य बारी-बारी से सुख और दुःख दोनों का अनुभव करता है।॥ 12-13॥ | | ‘O mighty-armed Yudhishthira, the best among the virtuous! Listen to me, those who have not performed penance in this world cannot achieve great happiness. Man experiences both happiness and sorrow alternately.॥ 12-13॥ |
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