श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 159: प्रश्नके रूपमें आर्ष्टिषेणका युधिष्ठिरके प्रति उपदेश  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  3.159.9 
यथार्हं मानिता: कच्चित् त्वया नन्दन्ति साधव:।
वनेष्वपि वसन् कच्चिद् धर्ममेवानुवर्तसे॥ ९॥
 
 
अनुवाद
क्या तुम्हारे द्वारा विधिपूर्वक सत्कार किए जाने पर भी संतजन तुम पर प्रसन्न रहते हैं? क्या तुम वन में रहते हुए भी सदैव धर्म के मार्ग पर चलते हो?॥9॥
 
‘Do the saints remain pleased with you after being duly honoured by you? Do you always follow the path of Dharma even while living in the forest?॥ 9॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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