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श्लोक 3.159.8  |
सुकृतं प्रतिकर्तुं च कच्चिद्धातुं च दुष्कृतम्।
यथान्यायं कुरुश्रेष्ठ जानासि न विकत्थसे॥ ८॥ |
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अनुवाद |
'कुरुश्रेष्ठ! क्या तुम अपने उपकारक का उचित बदला चुकाना जानते हो? क्या तुम अपने अपकारक को अनदेखा करने की कला जानते हो? क्या तुम अपने पर गर्व नहीं करते?॥8॥ |
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‘Best of the Kurus! Do you know how to repay your benefactor appropriately? Do you know the art of ignoring the person who has done you harm? Do you not boast of yourself?॥ 8॥ |
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