श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 159: प्रश्नके रूपमें आर्ष्टिषेणका युधिष्ठिरके प्रति उपदेश  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.159.7 
कच्चित् ते गुरव: सर्वे वृद्धा वैद्याश्च पूजिता:।
कच्चिन्न कुरुषे भावं पार्थ पापेषु कर्मसु॥ ७॥
 
 
अनुवाद
हे पार्थ! क्या तुमने सदैव अपने गुरुजनों, वृद्धजनों और विद्वानों का आदर किया है? क्या तुम्हें कभी पापकर्मों में भी रुचि होती है?॥7॥
 
‘Have you always respected all your teachers, elders and learned men? Parth! Do you ever have any interest in sinful acts?॥ 7॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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