श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 159: प्रश्नके रूपमें आर्ष्टिषेणका युधिष्ठिरके प्रति उपदेश  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.159.6 
नानृते कुरुषे भावं कच्चिद् धर्मे प्रवर्तसे।
मातापित्रोश्च ते वृत्ति: कच्चित् पार्थ न सीदति॥ ६॥
 
 
अनुवाद
'कुन्तीनन्दन! क्या तुम्हें कभी झूठ बोलने का मन करता है? तुम धर्म में तत्पर रहते हो न? क्या तुम अपने माता-पिता के प्रति वह सेवाभाव रखते हो जो तुम्हें रखना चाहिए? क्या उसमें कोई शिथिलता आई है?॥6॥
 
‘Kuntinandan! Do you ever feel like lying? You remain devoted to Dharma, don’t you? Do you maintain the service attitude towards your parents that you should have? Has there been any laxity in that?॥ 6॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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