श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 159: प्रश्नके रूपमें आर्ष्टिषेणका युधिष्ठिरके प्रति उपदेश  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  3.159.32 
न तात चपलैर्भाव्यमिह प्राप्तै: कथंचन।
उषित्वेह यथाकामं यथाश्रद्धं विहृत्य च।
तत: शस्त्रजितां तात पृथिवीं पालयिष्यसि॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
हे प्रिय भाई! यहाँ आने वाले लोगों को किसी भी प्रकार से चंचल नहीं होना चाहिए। तुम यहाँ अपनी इच्छानुसार रहोगे, अपनी श्रद्धा के अनुसार विचरण करोगे और फिर लौटकर शस्त्रों द्वारा जीती हुई पृथ्वी पर शासन करोगे।
 
O dear brother! People who come here should not be fickle in any way. You will stay here according to your wish and roam around according to your faith and then return and rule the earth won by weapons.
 
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि यक्षयुद्धपर्वणि आर्ष्टिषेणयुधिष्ठिरसंवादे एकोनषष्टॺधिकशततमोऽध्याय॥ १५९॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत यक्षयुद्धपर्वमें आर्ष्टिषेण-युधिष्ठिरसंवादविषयक एक सौ उनसठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १५९॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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