श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 159: प्रश्नके रूपमें आर्ष्टिषेणका युधिष्ठिरके प्रति उपदेश  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  3.159.19 
विद्याधरगणाश्चैव स्रग्विण: प्रियदर्शना:।
महोरगगणांश्चैव सुपर्णाश्चोरगादय:॥ १९॥
 
 
अनुवाद
विद्याधर भी सुन्दर पुष्पों की मालाएँ धारण किए हुए अत्यन्त शोभायमान हो रहे हैं। उनके अतिरिक्त बड़े-बड़े सर्प, परजीवी पक्षी और सर्प आदि भी दिखाई दे रहे हैं॥19॥
 
The Vidyadhars too look very beautiful wearing garlands of beautiful flowers. Besides them, large serpents, birds of the parasitic species and snakes etc. are also visible.॥ 19॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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