श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 136: यवक्रीतका रैभ्यमुनिकी पुत्रवधूके साथ व्यभिचार और रैभ्यमुनिके क्रोधसे उत्पन्न राक्षसके द्वारा उसकी मृत्यु  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  3.136.9 
स तदा मन्युनाऽऽविष्टस्तपस्वी कोपनो भृशम्।
अवलुच्य जटामेकां जुहावाग्नौ सुसंस्कृते॥ ९॥
 
 
अनुवाद
तपस्वी रैभ्य स्वभाव से ही क्रोधी थे, फिर भी उस समय वे क्रोध से भर गए। अतः उन्होंने अपनी एक जटा उखाड़ी और उसे विधिपूर्वक स्थापित अग्नि में अर्पित कर दिया॥9॥
 
The ascetic Raibhya was by nature very short-tempered, and yet at that time he was overcome with rage. So he plucked out one of his locks of hair and offered it in the fire that had been set up with due rituals.॥9॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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