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श्लोक 3.136.20  |
यवक्रीतं स हत्वा तु राक्षसो रैभ्यमागमत्।
अनुज्ञातस्तु रैभ्येण तया नार्या सहावसत्॥ २०॥ |
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अनुवाद |
इस प्रकार यवक्रीत को मारकर वह राक्षस रैभ्य के पास लौट आया और उसकी अनुमति लेकर उस स्त्री के साथ कर्मरूप में रहने लगा तथा उसकी सेवा करने लगा। |
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Having thus killed Yavakrit, the demon returned to Raibhya and taking his permission began to live with that lady in the form of action, serving her. |
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इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि लोमशतीर्थयात्रायां यवक्रीतोपाख्याने षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्याय:॥ १३६॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्वमें लोमशतीर्थयात्राके प्रसंगमें यवक्रीतोपाख्यानविषयक एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १३६॥
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