श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  »  अध्याय 116: पिताकी आज्ञासे परशुरामजीका अपनी माताका मस्तक काटना और उन्हींके वरदानसे पुन: जिलाना, परशुरामजीद्वारा कार्तवीर्य-अर्जुनका वध और उसके पुत्रोंद्वारा जमदग्नि मुनिकी हत्या  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.116.12 
तत: शशाप तान् क्रोधात् ते शप्ताश्चेतनां जहु:।
मृगपक्षिसधर्माण: क्षिप्रमासञ्जडोपमा:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
तब ऋषि ने क्रोधित होकर अपने सब पुत्रों को शाप दे दिया। शाप देने से वे अपनी चेतना (विचारशक्ति) खो बैठे और तुरन्त ही मृग और पक्षियों के समान मंदबुद्धि हो गए॥12॥
 
Then the sage became angry and cursed all his sons. On being cursed, they lost their consciousness (power of thinking) and immediately became as dull-brained as deer and birds.॥12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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