श्री महाभारत  »  पर्व 18: स्वर्गारोहण पर्व  »  अध्याय 6:  »  श्लोक 6-9
 
 
श्लोक  18.6.6-9 
अत्र रुद्रास्तथा साध्या विश्वेदेवाश्च शाश्वता:।
आदित्याश्चाश्विनौ देवौ लोकपाला महर्षय:॥ ६॥
गुह्यकाश्च सगन्धर्वा नागा विद्याधरास्तथा।
सिद्धा धर्म: स्वयम्भूश्च मुनि: कात्यायनो वर:॥ ७॥
गिरय: सागरा नद्यस्तथैवाप्सरसां गणा:।
ग्रहा: संवत्सराश्चैव अयनान्यृतवस्तथा॥ ८॥
स्थावरं जङ्गमं चैव जगत‍् सर्वं सुरासुरम्।
भारते भरतश्रेष्ठ एकस्थमिह दृश्यते॥ ९॥
 
 
अनुवाद
भरतश्रेष्ठ! यहां महाभारत में रुद्र, साध्य, सनातन विश्वेदेव, सूर्य, अश्विनी कुमार, लोकपाल, महर्षि, गुह्यक, गंधर्व, नाग, विद्याधर, सिद्ध, धर्म, स्वयंभू ब्रह्मा, महर्षि कात्यायन, पर्वत, समुद्र, नदियां, अप्सराओं का समुदाय, ग्रह, संवत्सर, अयन, ऋतु, संपूर्ण प्राणी जगत, देवता और दानव- ये सभी एक साथ एकत्रित दिखाई देते हैं। 6-9॥
 
Bharatshrestha! Here in the Mahabharata, Rudra, Sadhya, Sanatan Vishvedev, Surya, Ashwini Kumar, Lokpal, Maharshi, Guhyak, Gandharva, Naga, Vidyadhar, Siddha, Dharma, Swayambhu Brahma, great sage Katyayan, mountains, seas, rivers, community of Apsaras, planets, Samvatsara, Ayana, season, the entire world of creatures, gods and demons - all of them are seen gathered together. 6-9॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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